मन तडपता है देख कर, उसकी नादानियाँ ,
न समझ 'दिल की' करती है मनमानियां ।
पहले जैसा अब कुछ भी नहीं ऐसा ,
अब तो बस होती हैं ,हैरानियाँ ।
जहाँ मचलती थी बहारें चमन में ,
आज बस !बसती हैं उधर वीरानियाँ ।
ऐसी फितरत नही थी, उसकी कभी ,
ये बस हैं!! वक्त की मेहरबानियाँ ।
जिन्दा रहेंगी ,यादें मेरी तेरे जहन में ,
हवाएं सुनाएंगी ''कमलेश''की कहानियां ॥
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
नादान-ए-दिल की गुस्ताखियाँ ...!!!
प्रस्तुतकर्ता कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 पर शुक्रवार, अप्रैल 09, 2010
लेबल: अहसास .कमलेश, मन
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4 टिप्पणियाँ:
संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना----।
बढिया...
आपकी पोस्ट पढ़ी बहुत अच्छी लगी संवदनाओं से भरपूर है
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