उल्फत नही थी दिल में ,तो दिल को रुलाया कैसे ?
मंजिल तलक कसमों को यूँ ही तुमने भुलाया कैसे ?
गर पता होता दिल को तेरी इस बात का,
क्या दर्द भरा सिला दिया ,मेरे जज्बात का ।
पहले ही मोड़ लेते अपने अरमानों की नाव को ,
गर न दिलाया होता यकीं प्यार कि बरसात का ।
मझधार में छोड़ दी पतवार ,प्यार के इमकान की ,
फना हो के चुका दी हमने, कीमत तेरे अहसान की ।
हमेशा मेरी रूह दुआ करे तेरे आबाद रहने की ,
पर न दे खुदा तुझे मौका ,किसी को अपना कहने की ।
'कमलेश 'तुम्ही ने इस जिन्दगी को इक दम से मोड़ा था ,
शिकवा है तोडा उसी दिल को, जिससे तुमने ही जोड़ा था ॥
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010
शिकवा ...!!!
प्रस्तुतकर्ता कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 पर मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010
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