शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

अजनबी ...!!!

जो जीते थे मेरे लिये वो ,अजनबी कैसे हो गये ,
बड़ी जतन से संजोये रिश्ते ,ये कैसे ऐसे हो गये

आवाज आयी टूटने की , लगा कुछ है गिरा,
फिर ये दिलों के टुकड़े तार-तार कैसे हो गये

शिकवों की सिसकियाँ थी ,सुनी शायद किसी ने ,
उन छलकती आँखों के आंसू ,इतने बे-जार कैसे हो गये

कुछ तो है दिलों में इक दूसरे के ,जो जीने नही देता ,
अब जीने-मरने के जाने ये इकरार कैसे .ऐसे हो गये

जालिम कह कर वो भी वैसे हो गये,की हमें क्या ?,
''कमलेश '' कातिल थे वो फरिश्ते कैसे -ऐसे हो गये

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kamlesh