शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

हुई सुबह तो उनकी ..!!!

हुई सुबह तो उनकी आँखों में जो सरूर था ,
आँखों की लाली
कह रही थी ,कुछ हुआ जरूर था

उलझी हुई लटों में, कुछ प्रश्न भी थे अनसुलझे ,
लटें ही सुलझी ? कुछ प्रश्न और भी उलझे
उल्टा प्रश्न आँखों ने किया जरूर था ........

तन की उमंग मन की तरंग होठों पर थी आयी ,
गले का हार होठों का श्रृंगार थी छितराई
गला कुछ बता पाने को मजबूर था ......

तेरी उल्फत ने मेरे दिल को तडफा दिया ,
तड़फते दिल ने फिर भी तेरा सिजदा किया
उसने पलट कर एक बार देखा जरूर था ........

कैसे समझाये ज़ालिम जमाने को अपनी दशा ,
''कमलेश'' जिसको समझा जमाना शाकी का नशा
वो तो चमक मेरी चाहत का नूर था .......

kamlesh