शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

दिल के अरमानो को गर अल्फाज़ मिले होते ,
आज जमाने के रूबरू लब सिले होते

लग ही जाता पता दिल--दर्द जमाने को ,
संग दिल भीड़ के सामने लब हिले होते

शुक्र - गुजार होता उन बेगानों का,
अपनों से कोई शिकवे -गिले होते

अपनी मंजिल मिल जाती खद--खुद ,
खुली बाँहों को दो हाथ और मिले होते

'कमलेश 'बद्ल जाते रस्मों -रिवाज़ दुनिया के ,
शुरू अरमानों को अल्फाज़ देने के सिलसिले होते

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kamlesh