दिल के अरमानो को गर अल्फाज़ मिले होते ,
आज जमाने के रूबरू न लब सिले होते ।
लग ही जाता पता दिल-ए-दर्द जमाने को ,
संग दिल भीड़ के सामने लब हिले होते ।
शुक्र - गुजार होता उन बेगानों का,
न अपनों से कोई शिकवे -गिले होते ।
अपनी मंजिल मिल जाती खद-ब-खुद ,
खुली बाँहों को दो हाथ और मिले होते ।
'कमलेश 'बद्ल जाते रस्मों -रिवाज़ दुनिया के ,
शुरू अरमानों को अल्फाज़ देने के सिलसिले होते ॥
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
प्रस्तुतकर्ता कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 पर शुक्रवार, जनवरी 29, 2010
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