दिखाए वक्त ने यहाँ मंजर कैसे-कैसे ,
छुपा रखे थे आस्तीनों में खंजर कैसे-कैसे।
कई बार लहू-लुहान हुई इंसानियत जहाँ ,
ज़ालिम ने दिए 'नश्तर' कैसे-कैसे।
वक्त को तवक्को भी न थी इन्किलाब की,
कारवां से जुड़ता गया हर वशर कैसे-की।
वक्त ने जिसको समझा था बस्ती 'मुर्दों की ',
शहीदे -जनाज़े में हुए शामिल हम सफर कैसे-कैसे।
यादें न मिटेंगी वक्त के स्याह पर्दे से कभी ,
हमेशा चीखेंगी दास्ताने , हुआ यहाँ जबर कैसे-कैसे।
''कमलेश'इस तूफ़ान को मत इक गुबार भर समझो ,
देखना इसका 'सदियों'तक होता है 'असर' कैसे-कैसे।।
छुपा रखे थे आस्तीनों में खंजर कैसे-कैसे।
कई बार लहू-लुहान हुई इंसानियत जहाँ ,
ज़ालिम ने दिए 'नश्तर' कैसे-कैसे।
वक्त को तवक्को भी न थी इन्किलाब की,
कारवां से जुड़ता गया हर वशर कैसे-की।
वक्त ने जिसको समझा था बस्ती 'मुर्दों की ',
शहीदे -जनाज़े में हुए शामिल हम सफर कैसे-कैसे।
यादें न मिटेंगी वक्त के स्याह पर्दे से कभी ,
हमेशा चीखेंगी दास्ताने , हुआ यहाँ जबर कैसे-कैसे।
''कमलेश'इस तूफ़ान को मत इक गुबार भर समझो ,
देखना इसका 'सदियों'तक होता है 'असर' कैसे-कैसे।।
1 टिप्पणियाँ:
वाह.....
बहुत बढ़िया..
अनु
एक टिप्पणी भेजें