गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

शून्य की गोद मे ....

चित्र साभार -राज भाटिया जी

जिंदगी के झनझावतों से निकल जाना चाहता हूँ.
शून्य की गोद मे बिल्कुल पिघल जाना चाहता हूँ..
कुच्छ भी नही है उस शून्य के उस पार, ...
लेकर अपने अस्तित्व को बिखर जाना चाहता हूँ,,
यह जिंदगी है घूमती उस शून्य की तरह ,
पता
नही मैं किधर जाना चाहता हूँ,,
संवेदनाओं
की धृोहर जो दी है आपने ,
उनको
लेकर ना इधर ना उधर जाना चाहता हूँ!!

0 टिप्पणियाँ:

kamlesh