सोमवार, 26 सितंबर 2011

कमलेश भगवती प्रसाद वर्मा
कैसी है ! ये स्याह रात , कैसी ये तन्हाई है ,
फिर क्यूँ ऐसे हालत में, तेरी याद आयी है ,

ना कोई सबब बनता है ,दिल तुझे याद करे ,
मगर जिगर में क्यूँ कर, हूक सी उठ आयी है ,

पुराने जख्म ना कुरेदे कोई, यादों के खंजर से ,
बड़ी मुश्किल से इससे ,दिल ने निजात पाई है ,

कैसे जी लेते है वो ! बे-वफाई के दागों के साथ ,
कभी नही हुई देखो जमाने में, इनकी रुसवाई है ,

जलाल--इश्क को ज़नाब , कमतर ना आंकिये ,
'कमलेश' इश्क के जलवों में ये कायनात नहाई है

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kamlesh