पकड़े वसूलों को जो चलती रही ;
दुस्वारियों की तपिश में जलती रही ।
आखिर में हाथ मलती रही ,
सच्चाई झूठ की गर्मी से पिघलती रही ।
मुख से न निकला कोई बैन ,
बेबस, बस देखते रहे ''तिरछे नैन ''॥
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
पकड़े वसूलों को...!!
प्रस्तुतकर्ता कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 पर शुक्रवार, जनवरी 22, 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें